जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

बुधवार, 31 जुलाई 2013

महान् कार्य करने वाली स्त्री को क्या महापुरुष कहेंगे ?




यह किस का भ्रष्टाचार है ?






स्त्री-केन्द्रित ढाँचे का लोकतन्त्र (पुस्तकांश)




स्त्री-भाषा की अवधारणा






भाषिक आतंकवाद और स्त्री के लिए अनुकूल भाषा






कतार में स्त्री






बाबाओं का जाल और धर्म का जंजाल : तौबा करें इन से तत्काल










वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ? : अनमेल विवाह की महिला-उत्पीड़न-संस्कृति









बाल-वाटिका









भक्तिकालीन सामाजिक चेतना के संघटन में रैदास की अवस्थिति