जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

‘समान्तर दृष्टि की राह’ पुस्तक की समीक्षा (‘उम्मीद’ में प्रकाशित)








‘शोध और शिक्षण : साहित्य के सन्दर्भ में’ (‘भारतीय आधुनिक शिक्षा’ में प्रकाशित)















‘सन्दर्भ में व्याकरण-शिक्षण का औचित्य और स्वरूप’ (‘परिप्रेक्ष्य’ में प्रकाशित)