जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

बुधवार, 4 नवंबर 2015

‘बेटा आँख होता है, बेटी नाक ’ - ‘चेतांशी’ में प्रकाशित




‘हिन्दी-व्याकरण के कुछ उलझे-अनुत्तरित सवाल’ (आलेख) - ‘भाषा’ में प्रकाशित















‘हिन्दी की ध्वनि/वर्ण-व्यवस्था :एक अवलोकन’ (आलेख) - ‘गवेषणा’ में प्रकाशित