जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

‘भाषा में पुरुष-सत्ता का वर्चस्व’ - ‘जनसत्ता’ (रविवारी), दिनांक २-१०-१६ में प्रकाशित





‘कहावतों में झाँकती स्त्री-उपेक्षा’ - ‘जनसत्ता’ (रविवारी), दिनांक ११-१२-१६ को प्रकाशित आलेख





“सूक्ति-संसार में स्त्री’ - ‘चेतांशी’ में प्रकाशित आलेख