`एक बूँद'
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सत्-चित्-वेदनामय है जीवन! वेदना विषमता से प्रसूत है, जो नैसर्गिक नहीं, हमारे द्वारा निर्मित समाजार्थिक/ सांस्कृतिक ढाँचे की देन है । हम इस ज़मीनी हक़ीकत को समझें और इस की बुनियाद में रचनात्मक बदलाव लाने हेतु सजग-संलग्न रहें! ताकि, इस स्वच्छन्द खिलावट का जन्मसिद्ध अधिकार हर नर-नारी को उपलब्ध हो; न कि चन्द लोगों का विशेषाधिकार बन कर रह जाए!
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