जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

रविवार, 3 अप्रैल 2022

‘कामायनी’-पाठ 4 (‘काम’) / वाचक -रवीन्द्र कुमार पाठक

‘कामायनी’-पाठ 3 (‘श्रद्धा’) / वाचक - रवीन्द्र कुमार पाठक

‘कामायनी’-पाठ 2 (‘आशा’) / वाचक - रवीन्द्र कुमार पाठक

‘कामायनी’-पाठ 1 (‘चिन्ता’) /वाचक - रवीन्द्र कुमार पाठक

‘कामायनी’-पाठ 0 (‘आमुख’) /वाचक - रवीन्द्र कुमार पाठक