जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

लोकसभा चुनाव (2024), राजनैतिक चेतना और मतदान-प्राथमिकता //संसदीय राजनीति : 'धूमिल' की कवि-दृष्टि.

मानव-मुक्ति हेतु ज्ञान-क्रान्ति के प्रतिमान//आम्बेडकर-राहुल सांकृत्यायन चर्चा-1

नववर्ष से भारतवर्ष तक : वासंतिक कालयात्रा // वसन्त - 5