जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

‘समान्तर दृष्टि की राह’ पुस्तक का लिंक





‘समान्तर दृष्टि की राह’
(रचनात्मक एवं वैचारिक परिदृश्य का स्त्री-विवेक)
     पी.डी.एफ.




पुस्तक का लिंक
https://epustakalay.com/book/231231-samantar-drishti-ki-rah-by-dr-ravindra-kumar-pathak/



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें