जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

‘डा. हंस का व्याकरण-विमर्श : विवेचन का लालित्य’ (२०१६ में जहानाबाद, बिहार से प्रकाशित पुस्तक ‘डा. हंस : समयुगीन दृष्टियों का परिप्रेक्ष्य’ में संकलित आलेख)






























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