जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

‘समान्तर दृष्टि की राह (रचनात्मक एवं वैचारिक परिदृश्य का स्त्री-विवेक) पुस्तक का लिंक

‘समान्तर दृष्टि की राह’
(रचनात्मक एवं वैचारिक परिदृश्य का स्त्री-विवेक)
  यश प्रकाशन प्रा.लि., दिल्ली  / २०१३

पुस्तक का लिंक

https://epustakalay.com/book/231231-samantar-drishti-ki-rah-by-dr-ravindra-kumar-pathak/


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