जीवन-दर्शन के सूत्र

(1) “ अगर इन्सानों के अनुरूप जीने की सुविधा कुछ लोगों तक ही सीमित है, तब जिस सुविधा को आमतौर पर स्वतन्त्रता कहा जाता है, उसे विशेषाधिकार कहना उचित है ।” -- डॉ. भीमराव आम्बेडकर (2) “ मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उस की आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है ।” -- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

बुधवार, 11 अगस्त 2010

जाति-आधारित जनगणना का फ़ैशनबल विरोध क्यों ?

यह ठीक है कि ‘जाति’ एक कल्पना है,लेकिन दुख का विषय है कि वही कल्पना भारतीय समाज को संचालित करने वाली कड़वी सच्चाई बनी हुई है । समाज अनगिनत जातिगत स्तरों में इस कदर बँटा हुआ है कि हमारे शादी-ब्याह,नातेदारी,खान-पान,जीवन के विविध सांस्कृतिक पहलुओं ; यहाँ तक कि हमारे राजनैतिक फ़ैसलों में भी ‘जाति’ प्राय: निर्णायक भूमिका निभाती है । इस विसंगत वास्तविकता को झुठला कर जो लोग जाति-निरपेक्ष जनगणना का ही प्रस्ताव रखते हैं, वे वस्तुत: शुतुरमुर्गी प्रवृत्ति के शिकार हैं । उन के द्वारा जातिवादी हकीकत को अनदेखा कर के चलने मात्र से जाति-भेद और उस से जुड़े उत्पीड़न व पिछड़ेपन का ज़हर खत्म नहीं हो जाता । यदि इसे खत्म करना है तो जातिगत संरचना के गणित,यान्त्रिकी और समाजशास्त्र को समझना होगा,जिस के लिए एक जरूरी रास्ता है जाति-आधारित जनगणना । अपनी जन्मगत स्थितियों से पिछड़े और कुचले गये लोगों का उत्थान कर , समाज के समतलीकरण के लिए जब हम ने जातिगत आरक्षण-प्रणाली को स्वीकार किया है,तो जाति-आधारित जनगणना से हमें परहेज क्यों है ? जब हमें धर्म व संवर्ग(एस.सी., एस.टी.) आधारित जनगणना से कोई दिक्कत नहीं है,तो जातिगत जनगणना से क्यों है ? इस से ‘जाति का जिन्न और ताकतवर हो जाएगा’ – यह कहना वैसे ही है जैसे रोगियों का विविध कैटेगरियों में आकलन करने से रोग और मजबूत हो जाएगा । हमें यह समझना चाहिए कि यदि अपने किसी अंग में हुए घाव का सही इलाज चाहते हैं तो उसे ढाँपने की जगह, उघाड़ कर दिखाना होता है । समग्रत:, यही कहना उचित है कि जब तक भारतीय समाज जातिगत स्तरीकरण और तद्जन्य उत्पीड़न व पिछड़ेपन का शिकार है,तब तक जातिगत आरक्षण-व्यवस्था की अहमियत बनी रहेगी,जिस के प्रामाणिक निर्धारण और नियोजन के लिए जाति-आधारित आकलन (जनगणना) की भी जरूरत बनी रहेगी ।

n डॉ. रवीन्द्र कुमार पाठक

व्याख्याता,हिन्दी-विभाग, जी.एल.ए.कॉलेज, डाल्टनगंज (झारखण्ड)

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